Sarm karo sarm
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लाशें …ये साहब ..1948 के दौर से भेज रहे है
सिलसिला आज भी जारी है ….आगे भी सम्भावना ऐसी ही है ….
अंतर इतना है …की पहले खून खौलता था ..देश उबलता था ..जबाब भी देते थे …
अब कुछ सेक्युलर लोग आ गए है ..
–चाहते है ..खून का बदला खून नहीं ..उनसे बात करो ….हम उनके जैसे नहीं हो सकते …
–हम अपने अन्दर के डर और भय को छुपाये रखने के लिए ऐसे शब्द का सहारा लेते है
–हां अब खून नहीं खौलता …जब बहुत मन होता है ..मोमबत्ती जला लेते है
–कुछ लोग जाके अनशन कर लेते है ….वोट का जुगाड़ भी हो जाता है …
जाने क्या हुआ है …नपुंसकता का बीज जाने किसने बोया ….उन्ही तथाकथित बुद्धिजीवियों ने जिन्हें घर में घुसी छिपकली से भी डर लगता है ..
फिर से शेर ने दहाड़ा है ..थोडा और रुको …वक़्त बदल रहा है …
इस बार ऐसा जवाब दिया जायेगा ..की सारा भारत कहेगा की क्या जवाब है …..
जय हिन्द ……..
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