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¤ दिव्य-दृष्टि ¤

Sarm karo sarm
Sarm karo sarm
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ज़र्रे-ज़र्रे मेँ झाँकी है भगवान की …
किसी सूझ वाली आँख ने पहचान की …
वो ईश्वर, वो प्रभु इस सृष्टि के कण-कण मेँ विद्यमान हैँ ; ऐसी कोई जगह नहीँ जहाँ वो ना हो । लेकिन वो हमेँ अपनी इन आँखोँ से दिखाई नहीँ देते हैँ ।
इसलिए कुछ लोगोँ का कहना है कि ईश्वर होते ही नहीँ है ।
लेकिन ऐसा नहीँ है । ऐसी बहुत-सी चीज़ेँ हैँ जिन्हेँ देखने मेँ हमारी ये आँखेँ असमर्थ हैँ ; uv-rays, infrared rays, microbes etc. अनेक चीज़ेँ हैँ। लेकिन हम इनके अस्तित्व को नकार नहीँ सकते हैँ । इन्हेँ भी देखा जा सकता है , यदि हमारे पास इन्हेँ देखने के उपकरण मौजूद होँ तो ।
जैसे यदि हमारे पास microscope है , तो हम microbes को देख सकते हैँ ; दूर की चीज़ोँ को देखने के लिए telescope की ज़रुरत होती है ।
उसी तरह उन दिव्यातिदिव्य ईश्वर को देखने के लिए ‘दिव्य-दृष्टि’ यानी divine eye की ज़रुरत होती है ।
तभी श्रीकृष्ण ने गीता मेँ कहा-
“न तु मां शक्यसे द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा ।
दिव्यं ते ददामि चक्षुः पश्य मे योगमैश्वरम ॥”
अर्थात हे अर्जुन , तू मुझे अपनी इन आँखोँ द्वारा नहीँ देख सकता है । इसलिए मैँ तुम्हेँ ‘दिव्य-नेत्र’ प्रदान करता हूँ, इससे तू मेरी ईश्वरीय योगशक्ति को देख सकेगा ।
यह दिव्य-दृष्टि हम सभी मानवोँ के पास है। जहाँ हम तिलक या बिँदी लगाते हैँ यह वहाँ होती है लेकिन बाहर से दिखती नहीँ है।
वैज्ञानिक अध्ययन से भी यह साबित किया जा चुका है कि हमारे मस्तिष्क मेँ pitutary gland के ठीक ऊपर गहराई मेँ pineal gland होती है जिसमेँ pinealocytes पाए जाते हैँ, जो photoreceptor cells के जैसे दिखते हैँ ,माने इसका संबंध ‘दृष्टि’ से होता है। लेकिन यह dormant यानी सुषुप्त होती है।
वैज्ञानिकोँ के अनुसार यदि इसे किसी व्यक्ति मेँ जागृत कर दिया जाए तो उसमेँ extra sensory powers आ सकते हैँ।
इसी pineal gland को आध्यात्मिक भाषा मेँ ‘दिव्य-दृष्टि’ , third eye कहा गया ।
इस दिव्य दृष्टि द्वारा ध्यान करने से pineal gland से melatonin hormone का स्राव होता है जो हमारे भीतर स्फूर्ति, संकल्प शक्ति, निर्भयता , एकाग्रता आदि का संचार करता है।
आज इसे जागृत करने के लिए बहुत-से ऊलजलूल उपाय किये जा रहे हैँ । कोई माथे पर छेद करवाता है, कोई LSD, strobe light आदि का उपयोग करता है।
लेकिन विचारणीय है कि यह कोई स्थूल आँख नहीँ है जो operation या किसी बाहरी प्रयासोँ से जाग्रत होगी।
यह एक आध्यात्मिक और अति सूक्ष्म आँख है ; इसलिए यह मात्र शुद्ध आध्यात्मिक ऊर्जा से ही खुल सकती है।
और इस अलौकिक ऊर्जा के स्रोत केवल और केवल “पूर्ण सद्‌गुरु” ही होते हैँ। बस वे ही इसे खोल सकते हैँ। और इसके खुलने के बाद ही हम ईश्वर के दिव्य सौँदर्य का प्रत्यक्ष अनुभव अपने ही भीतर कर पाते हैँ।

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