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आज माँ का श्राद है,,,उनको नमन करते हुवे इतना ही कहूँगा ,,,

Sarm karo sarm
Sarm karo sarm
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कहने को अनपढ़ थी पर कमाल थी
हिसाब में मेरी माँ बेमिसाल थी

आँखे पढती थी अख़बार की तरह
पूरे कुनबे की माँ देखभाल थी

मरने से पहले माँ किस्मत बना गई
बेशक खुद जीते जी फटेहाल थी

बुखार हो या दर्द सबका इलाज़ था
माँ चलता फिरता एक अस्पताल थी

भूला नही हूँ कुछ भी सब याद है
माँ के बिन जिन्दगी जी का जंजाल थी

माँ कहने को तो थी लाजवाब पर
उलझा सा सुलझा सा एक सवाल थी

दिल से मन से चाहत में बेचैन
जैसे तू यूं ही माँ भी विशाल थी

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